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महान व्यक्तित्व >> सम्राट अशोक

सम्राट अशोक

प्राणनाथ वानप्रस्थी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :46
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1492
आईएसबीएन :81-7483-033-2

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प्रस्तुत है सम्राट अशोक का जीवन परिचय...

धर्म-प्रचार

 

सम्राट् अशोक ने बौद्ध धर्म कैसे स्वीकार किया, इस बारे में दो कहानियां प्रसिद्ध हैं-

1. एक रात सम्राट् ने स्वप्न देखा कि उसे नरक में ले जाया गया है। इस स्वप्न के आने पर अशोक का हृदय दुःख से भर गया। वह इस दुःख से बचने का उपाय ढूंढने लगा। इस बीच उसकी छोटी बहिन आनन्दीजी, जो भिक्षुणी बन चुकी थी, वायु द्वारा उसके पास पहुंची और उसे उपदेश दिया, ''भ्राता! दुःखों से छूटने का केवल एक उपाय है, और वह है अपनी भूलों का पश्चात्ताप। तुम्हें चाहिए कि भिक्षुओं की संगति करो और जीवन को ऊंचा उठाओ।''

कहते हैं, अगले दिन ही सम्राट् वैशाली नगर में पधारे और बौद्ध-भिक्षुओं के चरणों में रहकर  उपदेश पाया और अपने जीवन को बदल डाला।

2. अशोक के भ्राता सुमन का पुत्र भिक्षु बन चुका था। सम्राट् ने उस नवयुवक साधु को बड़े आदर से बुलाया और बौद्ध धर्म का उपदेश लिया।

इसके बाद सम्राट् की काया ही पलट गई। वह दिन-रात प्रजा की भलाई की बातें सोचने लगा। वह जानता था कि संसार में धर्म के नाम पर बड़े-बड़े युद्ध हुए हैं। इतिहास अनेक घटनाओं से भरा पड़ा है। धर्म का नाम लेकर किस तरह एक मत वाले दूसरे मत वालों पर अत्याचार ढाते हैं और उनकी निन्दा करते हैं। इन्हीं कारणों से लोग सच्चे धर्म को नहीं जान पाते। अपने शिलालेख 12 में वे लिखाते हैं कि मैं धर्म द्वारा सभी मतों को फलता-फूलता देखना चाहता हूं।

स्तम्भ-लेख 2 में अशोक लिखाते हैं, ''धर्म अच्छा है। पर धर्म क्या? धर्म है पाप से दूर  रहना। अच्छे-अच्छे काम करना। दया, दान, सत्य और शुद्धता का पालन करना।'' इस तरह सम्राट् अशोक के अनुसार धर्म के छः अंग हैं।

अच्छे-अच्छे काम करने से अशोक का मतलब यह है कि माता-पिता की सेवा, ब्राह्मण और साधु की सेवा, वृद्धों की सेवा, गुरु की आज्ञा में रहना और पड़ोसियों, मित्रों और सम्बन्धियों के साथ श्रेष्ठ बर्ताव, नौकरों के साथ ठीक बर्ताव और दुखियों के दुःख दूर करना।

अशोक ने केवल इसी बौद्ध धर्म को माना। दूसरी बातों को, जिनसे लोगों के हृदय में भेद पैदा हो सकता था, उन्होंने छुआ तक नहीं।

इस सच्चे धर्म का संसार में प्रचार करने के लिए इस महान् सम्राट् ने कई ढंग अपनाए। 

अपने राज्य के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक शिलालेखों, स्तम्भलेखों और गुहालेखों से धर्म का डंका बजाया। ये लेख अधिकतर प्राकृत भाषा में लिखे हुए हैं इन लेखों में मनुष्य के चरित्र को ऊंचा उठाने की, धर्म की, संसार के कल्याण की और इतिहास की बातें लिखी हुई हैं।

शिलालेखों अर्थात् बड़े-बड़े पत्थरों पर धर्म की बातें लिखी हैं। स्तम्भलेखों अर्थात् बड़ी-बड़ी मीनारों पर धर्म का संदेश खोदा हुआ है। ये मीनारें चालीस से पैंतालीस फुट की ऊंचाई के और मनों वजन की मिली हैं। इनके ऊपर की पालिश बहुत बढ़िया है और वह ऐसी दिखती है जैसे आज ही की गई हो। आज का वैज्ञानिक अभी तक इस चमक को समझ नहीं सका।

गुहालेख अर्थात् गुफाओं में लिखे तीन लेख गया के पास बराबर की पहाड़ियों में मिले हैं।

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    अनुक्रम

  1. जन्म और बचपन
  2. तक्षशिला का विद्रोह
  3. अशोक सम्राट् बने
  4. कलिंग विजय
  5. धर्म प्रचार
  6. सेवा और परोपकार
  7. अशोक चक्र

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